एक पहाडी लोक कोरियोग्राफर कैलाश

Budox
Budox 4 Min Read

पहाड में रहकर पहाडी वेशभूषा और परिधानों की सोच रखने वाले कैलाश उन गिने चुने शिल्पियों में हैं, जिन्होंने बहुत कम समय में इस क्षेत्र में अपनी पहचान बनाई है। कैलाश एक शिल्पी ही नहीं वरन सामाजिक और सांस्कृतिक सरोकारों के प्रति भी उनकी गहरी समझ और आस्था है।
पर्वतीय अचंल में लोक पारम्परिक परिधानों को बाजार के अनुरूप आकर्षक बनाकर दुर्लभ परिधानों झकोटा, मिरजई, अंगडी (महिलाओं का एक अधोवस्त्र), त्यूंखा (भांग के रेसों से निर्मित), ऊनी सलवार, सण कोट, छपेल (भंगले और कण्डाली के रेसों से निर्मित), अंगोछा, गमछा, बिलाॅज, दौंखा (सीमान्त के निवासियों के पुरूष वेषभूषा), टपरेलू (गढवाली महिलाओं का पेटीकोट), पहाडी टोपी, मान मरज्यात बिलोज, लव्वा, अंगडी गती और घुँघटी बनाने के दक्ष कैलाश नित नए प्रयोगों से इस कला को जीवित रखने का प्रयास कर रहे हैं।
पौडी के एकेश्वर ब्लाॅक के ग्राम बिंजोली में 1 जुलाई 1974 को जन्मे कैलाश को यह कला विरासत में मिली है, नए प्रयोग और सीमान्त की वेषभूषा को क्षेत्र की पहचान बनाने की धुन में विगत 16 वर्षों से गोपेश्वर में टेलरिंग का व्यवसाय करने वाले कैलाश पहाडी लारा-लत्ता (पहाडी परिधान) बण्डी (अण्डर शर्ट), झगुलू (लडकियों की फ्राॅक), सदरी फत्यूगी, घाघरू, गन्जी बुखली, तिपट्या कठयाली, छगुली और पहाडी टोपी को नए लुक में प्रस्तुत कर इस कला के संरक्षण में अपनी यात्रा को जारी रखे हुए हैं।
कैलाश के इस हुनर को पहचाने हुए लोक गायक नरेन्द्र सिंह नेगी ने उन्हें सर्वाधिक प्रोत्साहित किया। कैलाश स्वयं कहते हैं कि उन्होंने नेगी जी के कार्यक्रमों के लिए कलाकोटा की मैरून फतोगी, मैरून गोल टोपी, कुर्ता, पैजामा आदि ड्रेस तैयार करने के साथ पहाड के अधिकत्तर लोक गायक और उनकी सांस्कृतिक मण्डलियों के लिए क्षेत्र की सांस्कृतिक पहचान के अनुसार ड्रेसे्स तैयार की। जन सरोकारों के लिए समर्पित कैलाश गिर्दा के भी फैन रहे। सन् 1997-98 में गोपेश्वर में नेहरू युवा केन्द्र द्वारा आयोजित कार्यक्रम में गिर्दा से मिल कर उन्हें अपने हाथों से बना पहाडी कुर्ता-पायजामा पहनाया। तब से आज तक स्व॰ उमेश डोभाल ट्रस्ट द्वारा आयोजित गिर्दा की स्मृति में दिए जाने वाले सम्मान में पुरस्कृत व्यक्ति को कैलाश अपने हाथों से बना कुर्ता-पायजामा पहनाकर अपनी भूमिका और संकल्प को चुपचाप बिना किसी प्रचार के निभा रहे हैं।
कैलाश द्वारा बनाई गई विलेजर के कपडे पर बनी टोपियाँ नरेन्द्र सिंह नेगी के अतिरिक्त शेखर पाठक (पहाड) नेहरू युवा केन्द्र चमोली लोक गायक प्रीतम भर्तवाण सहित हिमाचल और कनाडा, अमेरिका तक पहुँच चुकी है। कैलाश को व्यावसायिक दृष्टि से पहली बार ब्रेक सांसद सतपाल महाराज द्वारा उनके पुत्र की शादी में मिला जहाँ मंगल स्थान पर गढवाल अचंल में मंगलेर (मांगल गीत गाने वाले) की ड्रेस खडीगती और बजरमात्रती धोती तिगबन्दा और मुडेशी जैस लोक पारम्परिक परिधानों से हरिद्वार के विवाह मण्डप में विशुद्ध गढवाली लोक संस्कृति को सजीव होता देख शिल्प प्रेमियों ने कैलाश की मुक्त कंठ प्रशंसा की। कैलाश का कहना है कि इस काम को करने की उन्हें जो प्रेरणा हमारे लोकगीतों में कपडे-लत्तों का जो सार मिलता है, उससे मिली है। उनका यह भी मानना है कि उत्तराखण्ड ही नहीं समूचे हिमालय क्षेत्र के निवासियों की भेशभूषा के पीछे उसका मौसम और वैज्ञानिक आधार रहा है। इस बारे में वे आगे कहते हैं कि देव जात्राओं में देवी देवताओं के निशाण, ध्वज और पताका भी धार्मिकता के साथ एक विशिष्ट वैज्ञानिक आधार लिए हुए हैं।
कैलाश का सपना है कि पहाडी टोपी को हिमाचल की तरह ही लोक प्रिय बनाते हुए पहाडी बारातों में विशुद्ध लोक पारम्परिक बाद्य यंत्रों एवं लोक वेशभूषा के साथ शादी का आयोजन करना। इसके लिए वे लगातार प्रयत्नशील है।
(डाॅ॰ योगेश धस्माना)
मो॰ – 9456706323

Share This Article
By Budox
Social researcher, Traveller, and Writer played diverse roles in the development sector, with a strong dedication for preservation of cultural heritage. Sharing my experince and insights on this website.